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बीए सेमेस्टर-3 गृहविज्ञान

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2644
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-3 गृहविज्ञान

प्रश्न- संज्ञान का अर्थ एवं परिभाषा लिखिए। संज्ञान के तत्व एवं संज्ञान की विभिन्न अवस्थाओं का वर्णन कीजिए।

अथवा
संज्ञान से आप क्या समझते हैं? जीन पियाजे की संज्ञानात्मक विकास की अवस्थाओं का वर्णन कीजिए।
सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. संज्ञान का आशय स्पष्ट कीजिए।
2. संज्ञान की उपयुक्त परिभाषा दीजिए।
3. संज्ञान के विभिन्न तत्वों का वर्णन कीजिए। 
4. संज्ञानात्मक विकास की विभिन्न अवस्थाओं का वर्णन कीजिए।

उत्तर -

संज्ञान का अर्थ एवं परिभाषा
(Meaning and Definitions of Cognition)

आधुनिक मनोविज्ञान में संज्ञान के प्रत्यय का प्रयोग अत्यन्त व्यापक सन्दर्भ में किया गया है। सामान्य अर्थ में उद्दीपक-जगत (Stimulus world) की जानकारी ही संज्ञान है परन्तु उद्दीपक जगत का ज्ञान स्वयं अपने आप में जटिल तथा बहुस्तरीय होता है तथा उसके अनेक रूप हो सकते हैं। प्रत्यक्षीकरण, स्मृति, कल्पना, चिन्तन तर्क, समस्या समाधान, संप्रत्यय निर्माण तथा भाषा का उपयोग आदि संज्ञानात्मक अनुभव के विविध रूप होते हैं। पर्यावरण की वस्तुओं को समानता तथा असमानता के आधार पर वर्गीकरण करने की योग्यता का विकास ही बालक का संज्ञानात्मक विकास है। संज्ञान के अर्थ को स्पष्ट करने के लिए विभिन्न विद्वानों ने भिन्न-भिन्न परिभाषायें दी हैं। उनमें से कुछ प्रमुख परिभाषायें निम्नलिखित हैं-

"किसी व्यक्ति ने स्वयं अपने बारे में तथा अपने पर्यावरण के बारे में जो विचार, ज्ञान, व्याख्या, समझ या धारणा (भाव) अर्जित किया है, वहीं संज्ञान है।'

Cognition is an individuals's thought knowledge, interpretations, understandings or ideas about himself and his environment.

- हिलगार्ड (Hillgard, 1975)

"समझ एवं प्रभाविकता के साथ कार्य करने एवं बाह्य पर्यावरण के साथ सुविधाजनक ढंग से व्यवहार करने की योग्यता ही संज्ञान है।'

"It is the capacity to function with understanding effectiveness and facility, in relation to the external environment."

. स्टॉट (Stout, 1975)

उपरोक्त परिभाषाओं की विवेचना करने पर स्पष्ट होता है कि संज्ञान एक जटिल मानसिक योग्यता है। इस योग्यता के विकास की प्रक्रिया जन्म के बाद आरम्भ होती है और जीवनपर्यन्त चलती रहती है। इसी योग्यता का उपयोग करके बालक अपने पर्यावरण को समझने का प्रयास करता है और यथोचित अनुक्रिया (व्यवहार) करता है। इस प्रक्रिया में संवेदी प्रात्यक्षिक योग्यता, चिन्तन, कल्पना, स्मृति एवं भाषा विकास की प्रक्रियाओं का महत्वपूर्ण योगदान होता है।

संज्ञान के तत्व
(Elements of Cognition)


संज्ञान के अर्थ एवं स्वरूप को स्पष्ट करने के लिए निम्नलिखित तत्वों को शामिल किया जा सकता है -

1. संज्ञान एक विकासात्मक प्रक्रिया एवं अर्जित योग्यता है।
2. इसमें प्रतीकों (Symbols) का प्रयोग तथा अन्तरण (Transfer) का गोचर मिलता है।
3. संज्ञानात्मक विकास में चिन्तन, कल्पना, स्मृति एवं पूर्वानुमानों का योगदान होता है।
4. बच्चों का संज्ञान सरल एवं वयस्कों का संज्ञान जटिल होता है।
5. यह एक आन्तरिक प्रक्रिया है अतः इसका बाह्य प्रेक्षण सम्भव नहीं है।
6. संज्ञानात्मक विकास में तार्किक चिन्तन का विशेष महत्व है। इस योग्यता में विकास के परिणामस्वरूप संज्ञानात्मक योग्यता में भी वृद्धि होती है।

व्यक्ति की सक्षमता भी उसकी संज्ञानात्मक योग्यता को प्रभावित करती हैं। चूंकि सक्षमता, समायोजन स्थापित करने में सहायक होती है अतः यह संज्ञान का प्रमुख निर्धारक है।

संज्ञानात्मक विकास की विभिन्न अवस्थायें
(Different Stages of Cognitive Development)

जीन पियाजे (Jean Piaget) ने संज्ञानात्मक विकास की निम्नलिखित चार अवस्थाओं का वर्णन किया है जो निम्नलिखित हैं-

1. संवेदी-पेशीय अवधि (Sensory Motor Period) इस अवस्था का विस्तार जन्म से दो वर्षों तक माना गया है। इस अवधि में शिशु जन्मजात संवेदी क्षमताओं के अतिरिक्त चलने, बोलने, समझने वस्तुओं को एक-दूसरे से अलग करने और सुखद एवं दुःखद भावों को व्यक्त करने की क्षमता आ जाती है। उनमें अनुकरण का व्यवहार प्रदर्शित होने लगता है तथा वह बड़ों को प्रसन्न करने का व्यवहार प्रदर्शित करने लगता है। उसे दूरी, ऊँचाई, गहराई, समय, दिशा आदि का भी ज्ञान होने लगता है। जन्मोपरान्त प्रारम्भिक महीनों में प्रतिवर्ती क्रियाओं (Reflex Actions) में सुधार आता है, दूध चूसने का व्यवहार काफी परिमार्जित हो जाता है और 4-5 माह की उम्र में वह वस्तुओं पर ध्यान केन्द्रित करने लगता है। दस-बारह माह की आयु में वह अनुकरण व्यवहार प्रदर्शित करने लगता है। बारह से अठारह माह की आयु होते-होते वह प्रयत्न एवं भूल के माध्यम से नवीन वस्तुओं को समझने का प्रयास करने लगता है। इसके बाद प्रतीकात्मक चिन्तन, कल्पना आदि का भी प्रदर्शन करने लगता है। रैथस (Rathus, 1984) ने इसे स्पष्ट करते हुए लिखा है कि संवेदी सूचनाओं एवं पेशीय क्रियाओं में समन्वय परिवेश का प्रारम्भिक अन्वेषण और भाषा की योग्यता का अभाव संवेदी-पेशीय अवस्था की मुख्य पहचान है।

2. पूर्व संक्रियात्मक अवधि (Preoperational Period) - इस अवस्था का विस्तार 3 से 6 वर्षों तक होता है। इसे दो उप अवधियों में विभक्त किया गया है जो पूर्व सम्प्रत्ययात्मक (Preconceptual) तथा आत्मज्ञान ( Intuitive) की अवधि कहलाती है तथा इनका विस्तार क्रमशः 2 से 4 तक 4 से 7 वर्ष माना जाता है। इस अवधि में भाषा का पर्याप्त विकास हो जाता है तथा वस्तुओं में पाये जाने वाले सम्बन्धों के बारे में भी पर्याप्त योग्यता विकसित हो जाती है। फर्थ (Furth 1971) के अनुसार इस अवस्था में तार्किक शक्ति तथा समस्या समाधान की क्षमता का भी विकास हो जाता है। आत्मज्ञान की अवधि में वर्गीकरण, व्याकरण एवं वस्तुओं में सम्बन्ध खोजने की योग्यता का भी विकास हो जाता है। हो सकता है कि वे हर समस्या के समाधान के नियमों को स्पष्ट न कर सकें। इस अवस्था में बालक अहं केन्द्रित हो जाता है (Ego centric ) तथा वस्तुओं को स्वयं से जोड़कर देखना आरम्भ कर देता है।

3. मूर्त संक्रियात्मक अवधि (Concrete operational Period) - इस अवधि का विस्तार 7 से 12 वर्षों तक होता है। इस अवधि में बालकों में चिन्तन एवं कल्पना की क्षमता काफी बढ़ जाती है। उनकी समझ के नये आयाम दिखाई देने लगते हैं। तार्किकता एवं वस्तुनिष्ठता बढ़ जाती है। उन्हें मात्रा ऊँचाई, लम्बाई चौड़ाई आदि का अनुपाती ज्ञान हो जाता है। वे वस्तुओं को क्रम से रख लेते हैं और उनका तुलनात्मक मूल्य समझने लगते हैं। इस अवधि में अनुमानपरक तर्क की योग्यता आ जाती है। इस अवधि में बच्चे दूसरों की गलतियों के प्रति आत्मनिष्ठ (subjective) निर्णय देने की स्थिति में आ जाते हैं। वे केवल हानि को ही नहीं बल्कि गलती करने वाले के इरादे को भी समझने के बाद अपना निर्णय देते हैं।

4. औपचारिक संक्रियात्मक अवधि (Formal Operational Period) - अमूर्त चिन्तन की योग्यता तथा सिद्धान्तों के द्वारा निगमन (Deduction from principles) इस अवधि की मुख्य विशेषतायें हैं। इसीलिए इसे संज्ञानात्मक परिपक्वता की अवधि भी कहा जाता है। यद्यपि यह अवधि 12वें वर्ष से आरम्भ होती है, परन्तु सभी बच्चे इसी समय इस अवस्था में नहीं पहुँचते हैं। विभिन्न कारणों से उनमें अन्तर आ सकता है। यह अवधि जीवन के अन्त तक चलती रहती है। इस अवधि में बालक में तार्किक योग्यता विकसित हो जाती है और वे समस्याओं का तार्किक हल निकालने लगते हैं। वे परिस्थिति के विभिन्न पक्षों की ओर एक साथ ध्यान देने में सक्षम हो जाते हैं। उनमें वैज्ञानिक चिन्तन की भी विशेष योग्यता दिखाई देने लगती है। वे विश्व के बारे में अनेकानेक परिकल्पनाओं की जाँच भी करना आरम्भ कर देते हैं।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- आहार आयोजन से आप क्या समझती हैं? आहार आयोजन का महत्व बताइए।
  2. प्रश्न- आहार आयोजन करते समय ध्यान रखने योग्य बातें बताइये।
  3. प्रश्न- आहार आयोजन को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारकों का वर्णन कीजिए।
  4. प्रश्न- एक खिलाड़ी के लिए एक दिन के पौष्टिक तत्वों की माँग बताइए व आहार आयोजन कीजिए।
  5. प्रश्न- एक दस वर्षीय बालक के पौष्टिक तत्वों की मांग बताइए व उसके स्कूल के लिए उपयुक्त टिफिन का आहार आयोजन कीजिए।
  6. प्रश्न- "आहार आयोजन करते हुए आहार में विभिन्नता का भी ध्यान रखना चाहिए। इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
  7. प्रश्न- आहार आयोजन के सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
  8. प्रश्न- दैनिक प्रस्तावित मात्राओं के अनुसार एक किशोरी को ऊर्जा की आवश्यकता होती है।
  9. प्रश्न- सन्तुलित आहार क्या है? सन्तुलित आहार आयोजित करते समय किन-किन बातों को ध्यान में रखना चाहिए?
  10. प्रश्न- आहार द्वारा कुपोषण की दशा में प्रबन्ध कैसे करेंगी?
  11. प्रश्न- वृद्धावस्था में आहार को अति संक्षेप में समझाइए।
  12. प्रश्न- आहार में मेवों का क्या महत्व है?
  13. प्रश्न- सन्तुलित आहार से आप क्या समझती हैं? इसके उद्देश्य बताइये।
  14. प्रश्न- वर्जित आहार पर टिप्पणी लिखिए।
  15. प्रश्न- शैशवावस्था में पोषण पर एक निबन्ध लिखिए।
  16. प्रश्न- शिशु के लिए स्तनपान का क्या महत्व है?
  17. प्रश्न- शिशु के सम्पूरक आहार पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  18. प्रश्न- किन परिस्थितियों में माँ को अपना दूध बच्चे को नहीं पिलाना चाहिए?
  19. प्रश्न- फार्मूला फीडिंग आयोजन पर एक लेख लिखिए।
  20. प्रश्न- 1-5 वर्ष के बालकों के शारीरिक विकास का वर्णन करते हुए उनके लिए आवश्यक पौष्टिक आहार की विवेचना कीजिए।
  21. प्रश्न- 6 से 12 वर्ष के बालकों की शारीरिक विशेषताओं का वर्णन करते हुए उनके लिए आवश्यक पौष्टिक आहार की विवेचना कीजिए।
  22. प्रश्न- विभिन्न आयु वर्गों एवं अवस्थाओं के लिए निर्धारित आहार की मात्रा की सूचियाँ बनाइए।
  23. प्रश्न- एक किशोर लड़की के लिए पोषक तत्वों की माँग बताइए।
  24. प्रश्न- एक किशोरी का एक दिन का आहार आयोजन कीजिए तथा आहार तालिका बनाइये।
  25. प्रश्न- एक सुपोषित बच्चे के लक्षण बताइए।
  26. प्रश्न- वयस्क व्यक्तियों की पोषण सम्बन्धी आवश्यकताओं का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
  27. प्रश्न- वृद्धावस्था की प्रमुख पोषण सम्बन्धी आवश्यकताएँ कौन-कौन-सी हैं?
  28. प्रश्न- एक वृद्ध के लिए आहार योजना बनाते समय आप किन बातों को ध्यान में रखेंगी?
  29. प्रश्न- वृद्धों के लिए कौन से आहार सम्बन्धी परिवर्तन करने की आवश्यकता होती है? वृद्धावस्था के लिए एक सन्तुलित आहार तालिका बनाइए।
  30. प्रश्न- गर्भावस्था में कौन-कौन से पौष्टिक तत्व आवश्यक होते हैं? समझाइए।
  31. प्रश्न- स्तनपान कराने वाली महिला के आहार में कौन से पौष्टिक तत्वों को विशेष रूप से सम्मिलित करना चाहिए।
  32. प्रश्न- एक गर्भवती स्त्री के लिए एक दिन का आहार आयोजन करते समय आप किन किन बातों का ध्यान रखेंगी?
  33. प्रश्न- एक धात्री स्त्री का आहार आयोजन करते समय ध्यान रखने योग्य बातें बताइये।
  34. प्रश्न- मध्य बाल्यावस्था क्या है? इसकी विशेषतायें बताइये।
  35. प्रश्न- मध्य बाल्यावस्था का क्या अर्थ है? मध्यावस्था में होने वाले शारीरिक परिवर्तनों का वर्णन कीजिए।
  36. प्रश्न- शारीरिक विकास का क्या तात्पर्य है? शारीरिक विकास को प्रभावित करने वाले करकों को समझाइये।
  37. प्रश्न- क्रियात्मक विकास का क्या अर्थ है? क्रियात्मक विकास को परिभाषित कीजिए एवं मध्य बाल्यावस्था में होने वाले क्रियात्मक विकास को समझाइये।
  38. प्रश्न- क्रियात्मक कौशलों के विकास का वर्णन करते हुए शारीरिक कौशलों के विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  39. प्रश्न- सामाजिक विकास से आप क्या समझते हैं? सामाजिक विकास के लिए किन मानदण्डों की आवश्यकता होती है? सामाजिक विकास की विभिन्न अवस्थाओं का वर्णन कीजिए।
  40. प्रश्न- समाजीकरण को परिभाषित कीजिए।
  41. प्रश्न- सामाजिक विकास को प्रभावित करने वाले तत्वों की विस्तारपूर्वक चर्चा कीजिए।
  42. प्रश्न- बालक के सामाजिक विकास के निर्धारकों का वर्णन कीजिए।
  43. प्रश्न- समाजीकरण से आप क्या समझती हैं? इसकी प्रक्रियाओं की व्याख्या कीजिए।
  44. प्रश्न- सामाजिक विकास से क्या तात्पर्य है? इनकी विशेषताओं का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
  45. प्रश्न- उत्तर बाल्यावस्था में सामाजिक विकास का क्या तात्पर्य है? उत्तर बाल्यावस्था की सामाजिक विकास की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  46. प्रश्न- संवेग का क्या अर्थ है? उत्तर बाल्यावस्था में संवेगात्मक विकास का वर्णन कीजिए।
  47. प्रश्न- संवेगात्मक विकास की विशेषताएँ लिखिए एवं बालकों के संवेगों का क्या महत्व है?
  48. प्रश्न- बालकों के संवेग कितने प्रकार के होते हैं? बालक तथा प्रौढों के संवेगों में अन्तर बताइये।
  49. प्रश्न- संवेगात्मक विकास को प्रभावित करने वाले कारकों का वर्णन कीजिए।
  50. प्रश्न- बच्चों के भय के क्या कारण हैं? भय के निवारण एवं नियन्त्रण के उपाय लिखिए।
  51. प्रश्न- संज्ञान का अर्थ एवं परिभाषा लिखिए। संज्ञान के तत्व एवं संज्ञान की विभिन्न अवस्थाओं का वर्णन कीजिए।
  52. प्रश्न- संज्ञानात्मक विकास से क्या तात्पर्य है? इसे प्रभावित करने वाले कारकों का वर्णन कीजिए।
  53. प्रश्न- भाषा से आप क्या समझते हैं? वाणी एवं भाषा का क्या सम्बन्ध है? मानव जीवन के लिए भाषा का क्या महत्व है?
  54. प्रश्न- भाषा- विकास की विभिन्न अवस्थाओं का विस्तार से वर्णन कीजिए।
  55. प्रश्न- भाषा-विकास से आप क्या समझती? भाषा-विकास पर प्रभाव डालने वाले कारक लिखिए।
  56. प्रश्न- बच्चों में पाये जाने वाले भाषा सम्बन्धी दोष तथा उन्हें दूर करने के उपाय बताइए।
  57. प्रश्न- भाषा से आप क्या समझती हैं? भाषा के मापदण्ड की चर्चा कीजिए।
  58. प्रश्न- भाषा से आप क्या समझती हैं? बालक के भाषा विकास के प्रमुख स्तरों की व्याख्या कीजिए।
  59. प्रश्न- भाषा के दोष के प्रकारों, कारणों एवं दूर करने के उपाय लिखिए।
  60. प्रश्न- मध्य बाल्यावस्था में भाषा विकास का वर्णन कीजिए।
  61. प्रश्न- सामाजिक बुद्धि का आशय स्पष्ट कीजिए।
  62. प्रश्न- 'सामाजीकरण की प्राथमिक प्रक्रियाएँ' पर टिप्पणी लिखिए।
  63. प्रश्न- बच्चों में भय पर टिप्पणी कीजिए।
  64. प्रश्न- बाह्य शारीरिक परिवर्तन, संवेगात्मक अवस्थाओं को समझाइए।
  65. प्रश्न- संवेगात्मक अवस्था में होने वाले परिवर्तन क्या हैं?
  66. प्रश्न- संवेगों को नियन्त्रित करने की विधियाँ बताइए।
  67. प्रश्न- क्रोध एवं ईर्ष्या में अन्तर बताइये।
  68. प्रश्न- बालकों में धनात्मक तथा ऋणात्मक संवेग पर टिप्पणी लिखिए।
  69. प्रश्न- भाषा विकास के अधिगम विकास का वर्णन कीजिए।
  70. प्रश्न- भाषा विकास के मनोभाषिक सिद्धान्त का वर्णन कीजिए।
  71. प्रश्न- बालक के हकलाने के कारणों को बताएँ।
  72. प्रश्न- भाषा विकास के निर्धारकों का वर्णन कीजिए।
  73. प्रश्न- भाषा दोष पर टिप्पणी लिखिए।
  74. प्रश्न- भाषा विकास के महत्व को समझाइये।
  75. प्रश्न- वयः सन्धि का क्या अर्थ है? वयः सन्धि अवस्था में होने वाले शारीरिक परिवर्तनों का वर्णन कीजिए।
  76. प्रश्न- निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए - (a) वयःसन्धि में लड़के लड़कियों में यौन सम्बन्धी परिपक्वता (b) वयःसन्धि में लैंगिक क्रिया-कलाप (e) वयःसन्धि में नशीले पदार्थों का उपयोग एवं दुरूपयोग (d) वय: सन्धि में आहार सम्बन्धी आवश्यकताएँ।
  77. प्रश्न- यौन संचारित रोग किसे कहते हैं? भारत के प्रमुख यौन संचारित रोग कौन-कौन से हैं? वर्णन कीजिए।
  78. प्रश्न- एच. आई. वी. वायरस क्या है? इससे होने वाला रोग, कारण, लक्षण एवं बचाव बताइये।
  79. प्रश्न- ड्रग और एल्कोहल एब्यूज डिसआर्डर क्या है? विस्तार से समझाइये।
  80. प्रश्न- किशोर गर्भावस्था क्या है? किशोर गर्भावस्था के कारण, लक्षण, किशोर गर्भावस्था से बचने के उपाय बताइये।
  81. प्रश्न- युवाओं में नशीले पदार्थ के सेवन की समस्या क्यों बढ़ रही है? इस आदत को कैसे रोका जा सकता है?
  82. प्रश्न- किशोरावस्था में संज्ञानात्मक विकास, भाषा विकास एवं नैतिक विकास का वर्णन कीजिए।
  83. प्रश्न- सृजनात्मकता का क्या अर्थ है? सृजनात्मकता की परिभाषा लिखिए। किशोरावस्था में सृजनात्मक विकास कैसे होता है? समझाइये।
  84. प्रश्न- किशोरावस्था की परिभाषा देते हुये उसकी अवस्थाएँ लिखिए।
  85. प्रश्न- किशोरावस्था की विशेषताओं को विस्तार से समझाइये।
  86. प्रश्न- किशोरावस्था में यौन शिक्षा पर एक निबन्ध लिखिये।
  87. प्रश्न- किशोरावस्था की प्रमुख समस्याओं पर प्रकाश डालिये।
  88. प्रश्न- किशोरावस्था क्या है? किशोरावस्था में विकास के लक्षण स्पष्ट कीजिए।
  89. प्रश्न- किशोरावस्था को तनाव या तूफान की अवस्था क्यों कहा गया है?
  90. प्रश्न- प्रारम्भिक वयस्कावस्था में 'आत्म प्रेम' (Auto Emoticism ) को स्पष्ट कीजिए।
  91. प्रश्न- किशोरावस्था से क्या आशय है?
  92. प्रश्न- किशोरावस्था में परिवर्तन से सम्बन्धित सिद्धान्त कौन से हैं?
  93. प्रश्न- किशोरावस्था की प्रमुख सामाजिक समस्याएँ लिखिए।
  94. प्रश्न- आत्म की मुख्य विशेषताएँ लिखिए।
  95. प्रश्न- शारीरिक छवि की परिभाषा लिखिए।
  96. प्रश्न- प्राथमिक सेक्स की विशेषताएँ लिखिए।
  97. प्रश्न- किशोरावस्था के बौद्धिक विकास पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  98. प्रश्न- सृजनात्मकता और बुद्धि में क्या सम्बन्ध है?
  99. प्रश्न- प्रौढ़ावस्था से आप क्या समझते हैं? प्रौढ़ावस्था में विकासात्मक कार्यों का वर्णन कीजिए।
  100. प्रश्न- प्रारंभिक वयस्कावस्था के मानसिक लक्षणों पर प्रकाश डालिये।
  101. प्रश्न- वैवाहिक समायोजन से क्या तात्पर्य है? विवाह के पश्चात् स्त्री एवं पुरुष को कौन-कौन से मुख्य समायोजन करने पड़ते हैं?
  102. प्रश्न- प्रारंभिक वयस्कतावस्था में सामाजिक विकास की विवेचना कीजिए।
  103. प्रश्न- उत्तर व्यस्कावस्था में कौन-कौन से परिवर्तन होते हैं तथा इन परिवर्तनों के परिणामस्वरूप कौन-कौन सी रुकावटें आती हैं?
  104. प्रश्न- वृद्धावस्था से क्या आशय है? संक्षेप में लिखिए।
  105. प्रश्न- वृद्धावस्था में संज्ञानात्मक सामर्थ्य एवं बौद्धिक पक्ष पर प्रकाश डालिए।
  106. प्रश्न- पूर्व प्रौढ़ावस्था की प्रमुख विशेषताओं के बारे में लिखिये।
  107. प्रश्न- युवा प्रौढ़ावस्था शब्द को परिभाषित कीजिए। माता-पिता के रूप में युवा प्रौढ़ों के उत्तरदायित्वों का वर्णन कीजिए।
  108. प्रश्न- वृद्धावस्था में रचनात्मक समायोजन पर टिप्पणी लिखिए?
  109. प्रश्न- उत्तर वयस्कावस्था (50-60 वर्ष) में हृदय रोग की समस्याओं का विवेचन कीजिए।
  110. प्रश्न- वृद्धावस्था में समायोजन को प्रभावित करने वाले कारकों को विस्तार से समझाइए।
  111. प्रश्न- उत्तर-वयस्कावस्था में स्वास्थ्य पर टिप्पणी लिखिए।

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